पूजा में पीले कपड़े ही क्यों पहने जाते हैं : POOJA MEIN PEELE KAPDE HI KYUN PEHNE JAATE HAIN

पूजा में पीले कपड़े ही क्यों पहने जाते हैं
- रेणु जैन

शास्त्रों के अनुसार भगवान की पूजा और अर्चना के समय पीले रंग के कपड़े पहनने को शुभ माना गया है । ज्योतिषशास्त्र के अनुसार पीले रंग को गुरू का रंग कहा गया है । प्राचीन समय से ही पीले रंग को ऊर्जावान रंगों की श्रेणी में रखा गया है । हाल में अमेरिका में हुए शोध में यह बात सामने आई कि पीला रंग इंसान की उमंग को बढ़ाने के साथ-साथ दिमाग को अधिक सक्रिय करता है । यह अध्ययन अमेरिका में 500 से अधिक लोगों पर तीन साल तक किया गया जिसमें पता चला कि जो लोग पीले रंग के कपड़ों को ज्यादा प्राथमिकता देते थे उनकी कार्यक्षमता और आत्मविश्वास दूसरे लोगों की तुलना में काफी अधिक था । अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि इन लोगों ने अपने कार्य के साथ-साथ अपने को स्वस्थ रखने का ध्यान भी अधिक रखा । शोधकर्ताओं का मानना है कि पीले रंग के कपड़े पहनने से दिमाग का सोचने-समझने वाला हिस्सा अधिक सक्रिय हो जाता है जो मनुष्य के अंदर ऊर्जा पैदा करता है। यह रंग इंसान की खुशी और उमंग पैदा करता है। शायद कुछ लोग ही यह बात जानते हैं कि भारत में गुरूवार को पीले वस्त्र पहनकर पूजा की जाती है जिसका महत्व ऊर्जा से है । पीले रंग से निकलने वाली तरंगे वातावरण में एक  ओरा बनाती हैं जो किसी को भी प्रभावित कर सकती है । पूजा में पीले रंग के कपड़े पहनने से मन स्थिर रहता है तथा मन में अच्छे विचार आते हैं ।
पीले रंग को अग्नि का प्रतीक भी माना गया है । अग्नि को हमारे धर्म में बहुत पवित्र माना गया है । इसएि ऐसी मान्यता है कि पीला रंग पहनने से मन में पवित्र विचार आते हैं । पीले रंग को देखने भर से मन में सकारात्मक भाव आते हैं।
पीले वस्त्रों के साथ यदि आप पीले रंग के खाद्य-पदार्थ का इस्तेमाल करते हैं तो आप स्वस्थ भी बने रहते हैं । पीले रंग के फल और सब्जियाँ हमारे शरीर की प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाते हैं । यह पेट संबंधी बीमारियों को भी दूर करता है। एक मान्यता यह भी है कि जो लोग पीले वस्त्र पहनते हैं वे दूसरे लोगों की तुलना में अधिक आकर्षक तथा सुंदर लगते हैं । इसलिए धार्मिक कार्यों पर पीले रंग को इतनी महत्ता दी जाती है ।

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Comments

  1. जैन न्याय ग्रन्थ के अनुसार पीला रंग के कपडे और आत्मा में होने वाले विकल्प का कारन कार्य और करता कर्म सम्बन्ध नहीं है।
    इन्द्रियों की पुष्टि और रंग वगेहराः में जरूर सम्बन्ध विशेष है पर वो आत्मा की स्वाभाव परिणाम नहीं विभाव परिणाम ही है। क्षणिक समता भाव संभव है पर ज्यादा समय तक स्थिरता नहीं रहती। चछु इन्द्रिय को कुछ समय तक अच्छे लगते है पर उसका परिणाम और आत्मा की साथ कोई सम्बन्ध नहीं|

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