दान की महिमा - DAAN KI MAHIMA #donations #donate #socialcause

दान की महिमा 
- रेणु जैन

कर्ण, दधीचि और राजा हरीशचंद्र जैसे परम दानी भारत में ही हुए हैं जिन्होंने दुनिया के सामने दान की मिसाल कायम की । पुराणों में अनेक तरह के दानों का उल्लेख मिलता है जिनमें अन्नदान, विद्यादान, अभयदान और धनदन को श्रेष्ठ माना गया है । यूँ ही नहीं कहा जाता कि एक हाथ से दान करो, तो दूसरे हाथ को पता नहीं चलना चाहिए । निस्वार्थ भाव से किया गया दान ही सही मानये में दान कहलाता है । यूनिवर्सिटी आॅफ बुफेलो के शोधकर्ता माइकल जे. पाॅलिन ने एक शोध किया जिसमें उन्होंने पाया कि दूसरों को सहयोग करना स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है । समाज से अलग-थलग रहने वाले और तनाव में जीने वाले लोग जल्दी ही शारीरिक रूग्णता के शिकार होने लगते हैं जबकि वहीं दूसरों की मदद करने से हमें लंबी उम्र की प्राप्ति होती है ।
वेदों और पुराणों में कहा गया है कि दान देने से हममें परिग्रह करने की प्रवृत्ति नहीं आती । मन में उदारता का भाव रहने से विचारों में शुद्धता आती है । मोह तथा लालच नहीं रहता । दान करने से हम न सिर्फ दूसरों का भला करते हैं बल्कि अपने व्यक्तित्व को भी निखारते हैं । जब हम दान बिना किसी स्वार्थ के करते है तो उस सुख का अनुभव हमें आत्मसंतुष्टि देता है ।
शास्त्रों में दान का विशेष महत्व बताया गया है । इस पुण्य कार्य से समाज में समानता का भाव बना रहता है और जरूरतमंद व्यक्ति को भी जीवन के लिए उपयोगी चीजें प्राप्त हो जती हैं । अन्न, जल, घोड़ा, गाय, वस्त्र, शय्या, छत्र और आसन इन आठ वस्तुओं का दान हमारे पूरे जीवन को शुभ फल देता है । जरूरतमंद के घर जाकर दिया दान उत्तम होता है । तिल, जल, चावल इन चीजों को हाथ में लेकर दान 

देना चाहिए अन्यथा वह दान दैत्यों को प्राप्त हो जाता है । गोदान को श्रेष्ठ माना गया है । यदि आप गोदान नहीं कर सकते हैं तो किसी रोगी की सेवा करना, देवताओं का पूजन, ब्राह्मण और ज्ञानी लोगों के पैर धोना ये तीनों काम भी गोदान के समान पुण्य देने वाले होते हैं । इसी तरह दीन, हीन, अंधे, निर्धन, अनाथ, गंूगे, विकलांगों तथा रोगी मनुष्य की सेवा के लिए जो धन दिया जाता है उसका बहुत पुण्य प्राप्त होता है ।
कहा गया है कि मनुष्य को अपने अर्जित किए हुए धन का दसवाँ भाग किसी शुभ कार्य में लगाना चाहिए । इसमें गोशाला मंे दान, गरीब बच्चों की शिक्षा का प्रबन्ध या गरीब व्यक्तियों को भोजन खिलाना शामिल है ।
माता-पिता, गुरू, मित्र, विनयी, उपकार करने वाला, दीन ,अनाथ तथा सज्जन को दान देना सुफल देता है लेकिन धूर्त, बंदी, मूर्ख, अयोग्य चिकित्सक, जुआरी, चाटुकार, चोर इनको दान देने का कोई औचित्य नहीं होता ।
दान देने के सम्बन्ध में सबसे जरूरी बात यह है कि यदि आप किसी दबाव या दिखावे के लिए दान करते हैं तो आपके दान का कोई मतलब नहीं होता जैसे झूठी वाहवाही के लिए दौलत का प्रदर्शन करने के लिए, मनोकामना पूरी होने के लालच में या फिर ईश्वर के डर से किया गया दान ।

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