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ईयरफोन का शौक खतरनाक
- रेणु जैन
Earphone पर Music सुनने के दौरान सड़क दुर्घटनाओं की घटनाएँ जितनी दर्दनाक हैं इन हादसों के शिकार लोगों की लापरवाही उतनी ही अफसोसजनक हैं । World Health Organization के आँकड़ों के अनुसार दुनियाभर में 1.1 अरब किशोर तथा युवा earphone की तेज आवाज की आदत के चलते बहरेपन की कगार पर हैं । University of Maryland की एक स्टडी के ताजा आँकड़े बताते है कि पिछले छह सालों में ईयरफोन की वजह से हुए हादसों में तीन गुणा वृद्धि हुई है । वहीं अमेरिका में पिछले पाँच सालों में 116 ऐसे हादसे हुए जिनमें ईयरफोन लगाए लोग कारों, बसों या ट्रेक की चपेट में आकर जान से हाथ धो बैठे । हर समय अकेले Mumbai में ज्यादातर बाहरी और ट्रेन के ट्रेफिक से अनजान होने के अलावा earphone इस्तेमाल किए हुए होते हैं ।
New York शहर के स्वास्थ्य विभाग ने हाल ही में एक सर्वे करवाया । इसमें 18 से लेकर 44 वर्ष की आयु के लोगों का रूटीन चेकअप करवाया गया । इस सर्वे में हर चार में से एक व्यक्ति को headphone के अधिक इस्तेमाल के कारण सुनने में दिक्कत थी । इस सर्वे में यह भी देखा गया कि हर तीन में से एक युवा रोज ज्यादा समय तक headpone का इस्तेमाल करता है । साथ ही 16 प्रतिशत लोग रोज चार या इससे अधिक घंटों तक ईयरफोन पर तेज म्युजिक सुनते हैं । कनाडा के एक शहर में तो इसैया ओतिएनों नाम का एक युवक ईयरफोन की वजह से helicopter तक की आवाज नहीं सुन पाया और जमीन पर उतरते ही हेलिकाॅप्टर के नीचे दब गया और उसकी मौत हो गई ।
पिछले दिनों Madhya Pradesh के शहर Indore में रेल की पटरियों पर गाने सुनने में मशगूल एक युवक की ट्रेन की चपेट में आने से मौत हो गई । युवक कानों में earphone लगाए हुए mobile पर म्युजिक सुनने में व्यस्त था । कान तो मजबूर थे ही और आँखें भी मोबाइल पर लगी हुई थीं । सुनना तो बंद साथ ही दिखना भी बंद । इसी तरह
कुछ साल पहले दिल्ली की प्रीत विहार क्षेत्र में सड़क पार कर रही एक एमबीए स्अूडंेड बस की चपेट में आकर मौत के मुँह में चली गई । यह युवती भी earphone लगाए हुए music सुन रही थी । गाजियाबाद के संजय नगर स्थित एक पब्लिक स्कूल के दो बच्चे रेलवे ट्रेक पर गाना सुनते हुए ट्रेन की चपेट में आ गए । ये दोनों बच्चे रेलवे लाइन के किनारे चल रहे थे । आस-पास खड़े लोगों ने इन्हें आवाजें भी दीं पर तेजी से आ रही ट्रेन दोनों को कुचलते हुए निकल गई । जब ट्रेन और बड़ी गाडियों के कानफोडू हाॅर्न ही नहीं सुनाई देते तो आसपास चल रहे राहगीरों की आवाजों को सुनना और संभलने का तो सवाल ही नहीं उठता । आमतौर पर बड़ी गाड़ी वाले हाॅर्न बजाने के बाद निश्चिंत हो जाते हैं कि उन्होंने अपने आने और रास्ते से हट जाने के संकेत दे दिए हैं पर उन्हें क्या पता की हाॅर्न की कानफोडू आवाज आगे वालों के कान तक पहुँची भी है कि नहीं ।
Earphone का addiction युवा वर्ग पर इस कदर हावी हो गया है कि उसके चलते उत्तर-प्रदेश के परिवहन विभाग ने ऐसे वैन चालकों के खिलाफ अभियान चलाने का फैसला लिया है जो कानों में ईयरफोन लगाकर वैन चलाते हैं । दरअसल यह अभियान एक घटना के बाद चलाया गया । इस घटना में एक स्कूल वैन चालक ईयरफोन लगाकर मानवरहित रेलवे क्राॅसिंग पार कर रहा था । इसी बीच तेज गति से आ रही ट्रेन से उसकी टक्कर हो गई । इस ट्रेन की आवाज उक्त वैन चालक ईयरफोन की वजह से सुन ही नहीं पाया । इस घटना में आठ बच्चों की मौत हो गई जबकि दस बच्चे घायल हो गए । पूरे प्रदेश में स्कूल वैन ड्रायवरों पर शिकंजा कसने के लिए ईयरफोन लगाकर स्कूल वैन चालक यदि पकड़ा जाएगा तो उसे परिवहन विभाग का जाँच दल छह माह की जेल या एक हजार रू. का जुर्माना लगाएगा ।
इसी तरह महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ के स्टूडेंट की म्युजिक के प्रति दीवानगी इतनी बढ़ गई थी कि हर स्टूडेंट ईयरफोन लगाए ही काॅलेज केम्पस में घूमने लगा । यह कैम्पस में स्टाइल सिंबल ही बन गया था मगर इस बार काॅलेज बोर्ड ने ईयरफोन पर पाबंदी लगा दी है । केम्पस में कोई भी स्टूडेंट ईयरफोन लगाए दिखा तो उसे ईयरफोन से तो हाथ धोना ही पड़ेगा साथ ही फाइन भी देना पड़ेगा । काॅलेज की प्रोफेसर कल्पलता पांडेय का कहना है कि कानों में ईयरफोन लगाने के बाद स्टूडेंट को कुछ सुनाई नहीं देता ।
डाॅक्टरों के मुताबिक ईयरफोन के अधिक उपयोग के कारण कान संबंधी परेशानियाँ पिछले सालों में कई गुणा बढ़ गई हैं । ईएनटी विशेषज्ञ डाॅ. दीपचंद गुप्ता कहते हैं कि आमतौर पर कुछ लोगों की सुनने की क्षमता 60 साल की उम्र के बाद प्रभावित होती है लेकिन अब यह समस्या युवाओं में भी हो रही है । इसका कारण तेज वाॅल्यूम में एमपी 3 या आईपोड सुनना है । डाॅ. गुप्ता के अनुसार तेज ध्वनि के कारण शुरू में कानों की रोम कोशिकाएँ अस्थायी रूप से क्षतिग्रस्त होती हैं या एक कान में सुनाई देना बंद हो जाता है । आमतौर पर जो रोम कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं वे अपनी मरम्मत खुद कर लेती हैं या इलाज से ठीक हो जाती हैं । समस्या तब होती है जब ये कोशिकाएँ ठीक नहीं होतीं और बहरापन स्थाई हो जाता है । सामान्य बातचीत के दौरान ध्वनि का औसत स्तर 60 डेसीबल होता है । हमारे कानों के लिए इतनी या इससे कम ध्वनि उपयुक्त होती है । इससे अधिक डेसीबल की ध्वनि रोम कोशिकाओं को स्थायी तौर पर क्षतिग्रस्त कर सकती है । एम.पी. 3 प्लेयर या आईपोड की ध्वनि का सर्वोच्च वाल्यूम 100 डेसीबल होता है, जो बहरा करने के लिए पर्याप्त है । विभिन्न समाराहों में बजने वाले संगीत की ध्वनि की तीव्रता 115 डेसीबल तक होती है । आधुनिक जीवनशैली भी बहरेपन का एक कारण है । आए दिन शादियों और पार्टियों में तेज ध्वनि के संगीत के कारण श्रवण क्षमता क्षीण होना आम बात है ।
ईयरफोन का एडिक्शन भारत में ही नहीं दुनियाभर में फैल चुका है । कई देशों में कान की एक बीमारी टिनेटस के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है । America के जाॅन हाॅपकिंस युनिवर्सिटी के शोध के अनुसार केवल अमेरिका में ही लगभग 48 मिलियन लोग कानों की समस्याओं से परेशान हैं । वहाँ 20 से 40 वर्ष की आयु में 80 प्रतिशत लोगों में मोबाइल फोन के अधिक प्रयोग के कारण कानों की समस्याएँ बहुत बढ़ी हैं । भारतीय स्वास्थ्य विभाग के अनुसार भारत में 20 से 22 प्रतिशत लोग कान की किसी न किसी समस्या से ग्रस्त हैं ।
कुछ समय पहले भारतीय क्रिकेट के पूर्व कप्तान Mahendra Singh Dhoni ने एक इंटरव्यू में कहा कि अंपायर वाॅकी टाॅकी इस्तेमाल करने के साथ एक कान में हेडफोन लगाते हैं । यानी अंपायर मैदान में एक कान का ही इस्तेमाल करते हैं । यह गलत है । उन्हें देानों कानों का इस्तेमाल करना चाहिए क्योंकि मैदान में बहुत छोटी-छोटी घटनाएँ घटती हैं जो एक कान से सुनाई नहीं देतीं । उसके लिए दोनों कानों का खुला रखना बहुत जरूरी है ।
Experts की मानें तो मोबाइल का उपयोग और उससे जुड़े खतरों के लिए जागरूकता जरूरी है । स्कूलों के बच्चों में ईयरफोन की बढ़ती लत से छुटकारे के लिए अभिभावक तथा अध्यापक दोनों को ही अपने-अपने स्तर पर बच्चों से बात करनी चाहिए। ईयरफोन की लत को जुनून न बनाते हुए केवल एक मजेदार गतिविधि के रूप में ही प्रयोग में लाया जाना चाहिए ।
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आपने बिल्कुल सही लिखा है प्रत्येक वस्तु का यदि सदुपयोग हो तो वह वस्तु अच्छी है अत्यधिक मात्रा में उपयोग या दुरुपयोग हो तो वही वस्तु घातक साबित हो सकती है
ReplyDeleteYou are right it is not correct when you drive the vehicle and use ear phones.
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