मिलावट की मार आदमी लाचार: विश्व खाद्य सुरक्षा दिवस WORLD FOOD SAFETY DAY SPECIAL JUNE 7 #FOODADULTERATION
मिलावट की मार आदमी लाचार
- रेणु जैन
हमारे देश में milawat कोई नया शब्द नहीं है । सालांे से मिलावटखोरी चली आ रही है । milawat करके खूब धन कमाया जाता है और घटिया सामग्री उपभोक्ताओं को उपलब्ध करायी जाती है । मिलावटखोरी रोकने के शुरू से ही कई प्रयास किए जाते रहे हैं लेकिन इस पर लगाम ही नहीं लगती । इस असफलता का एक प्रमुख कारण वे अधिकारी भी हैं जो खाद्य-सामग्री (khadya samagri) से सम्बन्धित विभागों में तैनात हैं। इनकी मिलीभगत के बिना मिलावटखोर धन्ना सेठ अपना कारोबार आगे नहीं बढ़ा सकते ।
सुबह से शाम तक हम जितनी भी चीजें खाते हैं उनमें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से milawat की जाती है । एक अनुमान के अनुसार बाजार में उपलब्ध लगभग 30 से 40 प्रतिशत सामान में milawat होती है । खाद्य-सामग्री में मिलावट की वस्तुओं पर निगाह डालने पर पता चलता है कि मिलावटी सामानों का निर्माण करने वाले लोग कितनी चालाकी से लागों की आँखों में धूल झोंक रहे हैं जिसके चलते लोग बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। पिछले दिनों बड़े पैमाने पर मिलावटी दूध की आपूर्ति से पता चलता है कि आजकल दूध भी स्वास्थ्यवर्द्धक न होकर मात्र मिलावटी तत्वों का पदार्थ होकर रह गया है, जिसके प्रयोग से लाभ कम हानि ज्यादा है। हालत यह है कि लोग दूध के नाम पर यूरिया, डिटर्जेंट, सोडा, पोस्टर कलर और रिफाइंड तेल पी रहे हैं । गौरतलब है कि पिछले साल सिंथेटिक दूध के कारोबार का पर्दाफाश हुआ था जिसके खिलाफ छह दिनों तक अभियान चला था । उत्तर-प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग की जाँच से यह चैंकाने वाला आँकड़ा सामने आया था कि राज्य के 25 फीसदी लोग घटिया, मिलावटी तथा हानिकारक दूध पही रहे हैं।
चिंता की बात है कि आज मिलावट का कहर सबसे ज्यादा रोजमर्रा की जरूरत की चीजों पर पड़ रहा है। नकली दूध, नकली घी, तेल, नकली चायपत्ती, दालें, फल, सब्जियाँ, डिब्बा बंद खाद्य वस्तुएँ, कोल्ड ड्रिंक्स, दवाइयाँ, मसाले यानी हर चीज मिलावट की चपेट में है। जाहिर है तबियत ठीक करने वाली दवाइयाँ तबियत खराब भी कर सकती हैं। खेतों से अनाज, फल एवं सब्जियों पर छिड़के केमिकल के साथ आया जहर भी हमारी धमनियों में खून के साथ रच-बस गया है । यहाँ यह जानकारी देना ठीक है कि पूरी दुनिया के किसान करीब 25 लाख टन रसायन, कीटनाशकों तथा खादों के रूप में खेतों में डालते हैं । विशेषज्ञ कहते हैं कि फल, सब्जियों तथा अनाज में यह मात्रा इतनी ही रहनी चाहिए कि मनुष्यों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर न पड़े । रासायनिक खादों तथा कीटनाशकों के बल पर उपजाई गई फसलों के सेवन से लोग कैंसर, दिमागी बीमारियों और आनुवांशिकी जटिलताओं की चपेट में आते हैं तथा कई लोग स्थायी विकलांगता के शिकार हो जाते हैं ।
विगत वर्षों में नूडल्स के पैकेट के नमूनों में मोनोसोडियम ग्लूटामेट और सीसा (लेड) की मात्रा तय मानक से अधिक पाई गई थी । इसके बाद नूडल्स बनाने वाली उक्त कंपनी को फूड सेफ्टी एंड एडमिनिस्ट्रेशन एक्ट की धारा 46(4) के तहत नोटिस भेजा गया और इसके लाखों पैकेट वापस मँगवा लिए गए । सवाल सिर्फ नूडल्स का ही नहीं है । माॅडर्न समाज के नए खान-पान नूडल्स, बर्गर, पिज्जा, चीज, पास्ता, कोल्ड ड्रिंक्स का स्वाद बढ़ाने तथा टिकाऊ बनाने के लिए कई तरह के रसायनों का इस्तेमाल होता है जिसमें सिर्फ कमाई का पहलू देखा जाता है । इंसानों की सेहत की कोई फिक्र नहीं होती । इस तरह अक्सर तीज-त्यौहारों पर देश के कोनों-कोनों से नकली घी तथा मावा पकड़े जाने की खबरें आती हैं।
वर्तमान में भारत में रोजमर्रा के खाद्य पदार्थ भी खाद्य सुरक्षा के मानकों पर खरे नहीं उतरते । इसके लिए सरकार को नियम सख्त बनाने के साथ ही खाद्य प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़ानी चाहिए । चीन में प्रति दो लाख आबादी पर एक प्रयोगशाला उपलब्ध है जबकि भारत में 9 करोड़ लोगों पर एक प्रयोगशाला की सुविधा है। मौजूदा समय में सिर्फ 72 ऐसे लैब हैं जिन्हें 100 गुणा बढ़ाने की आवश्यकता है। अमेरिका, दुबई और सिंगापुर सहित कई देशों में मिलावट को लेकर बनाए गए नियम काफी सख्त हैं पर हमारे देश में तो सब चलता है की दर्ज पर खूब मिलावट होती है।
वर्तमान में भारत में रोजमर्रा के खाद्य पदार्थ भी खाद्य सुरक्षा के मानकों पर खरे नहीं उतरते । इसके लिए सरकार को नियम सख्त बनाने के साथ ही खाद्य प्रयोगशालाओं की संख्या बढ़ानी चाहिए । चीन में प्रति दो लाख आबादी पर एक प्रयोगशाला उपलब्ध है जबकि भारत में 9 करोड़ लोगों पर एक प्रयोगशाला की सुविधा है। मौजूदा समय में सिर्फ 72 ऐसे लैब हैं जिन्हें 100 गुणा बढ़ाने की आवश्यकता है। अमेरिका, दुबई और सिंगापुर सहित कई देशों में मिलावट को लेकर बनाए गए नियम काफी सख्त हैं पर हमारे देश में तो सब चलता है की दर्ज पर खूब मिलावट होती है।
सब्ज़ियों में मिलावट (Adulteration in Vegetables)
मिलावट के चलते सब्जी को हरा रंग देने के लिए प्रयोग किए जाने वाला मेलेकाइन ग्रीन लीवर, आँत, किडनी सहित पूरे पाचन तंत्र को नुकसान पहुँचाता है। मेलेकाइन ग्रीन का अधिक सेवन पुरूषों में नपुंसकता और औरतों में बाँझपन का कारण बन सकता है । यही कैंसर की वजह भी बन सकता है । सब्जियों का आकार बढ़ाने के लिए आॅक्सीटोसिन के इंजेक्शन का प्रयोग होता है। यह पाचन तंत्र को प्रभावित करता है। दाल-चावल तथा अन्य अनाज को रंगने एवं चमकाने के लिए मेटानिन यूरो तथा टाट्राजिन जैसे रसायन का प्रयोग किया जाता है जिससे दालों की पौष्टिकता खत्म हो जाती है। दवाइयाँ तथा शराब भी मिलावटखोरी का शिकार है। शराब को ज्यादा जहरीला बनाने के लिए मिथाइल अल्कोहल (स्प्रिट) का प्रयोग होता है जिसकी थोड़ी ज्यादा मात्रा भी खतरनाक होती है ।
दवाइयों में मिलावट (Adulteration in Medicines)
रेखांकित करने वाली बात यह है कि भारत में नामी कंपनियों के शहद में हानिकारक एंटीबायोटिक्स पाए जाते हैं । विदेशो में निर्यात करने के लिए कंपनियाँ ख्याल रखती हैं कि शहर में एंटीबायोटिक्स न मिले हों क्योंकि विदेशों में शहद का एंटीबायोटिक्स या तो बैन है या फिर सीमित मात्रा में प्रयोग में आते हैं, पर भारत में एंटीबायोटिक्स के प्रयोग पर कोई रोक नहीं है।
विदेशों में डिस्प्रिन, डी-कोल्ड, विक्स एक्शन-500, एन्ट्रोक्यूनाल, एनालजिन और सिसप्राइड जैसी दवाओं पर बैन है लेकिन भारत में ये दवाइयाँ धड़ल्ले से बिकती हैं। भारत में इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशकों में से करीब 70 विदेशों में बैन किए जा चुके हैं क्योंकि ये हानिकारक केमिकल खाने के साथ हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं और अनेक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म देते हैं ।
बच्चो की चॉकलेट में मिलावट (Adulteration in Chocolates)
एक खिलौने के साथ मिलने वाली किंडर जाॅय (kinder joy) चाॅकलेट भारत में खूब बिकती है पर यह अमेरिका में प्रतिबन्धित है क्योंकि ये बच्चों के गले चोक करती है ।
च्यवनप्राश कनाडा (Canada) में बैन है क्योंकि इसमें लेड (Lead) और मरक्यूरी (Mercury) की मात्रा ज्यादा है लेकिन भारत में प्रचारित किया जाता है कि बच्चों को इससे शक्ति मिलती है । भारत के नामी ब्रांड के नमकीन अमेरिका में बैन हैं पर भारत में खूब बिकते हैं।
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ईमानदारी का गुण अब हवा हो गया है, राष्ट्रप्रेम सिर्फ पाकिस्तान विरोध ही है, तुच्छ स्वार्थों ने देश का नुकसान किया है, फिर भी जागरूकता से मिलावट से बचा जा सकता है, समसामयिक लेख , बधाई।
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