JUNE 5 WORLD ENVIRONMENT DAY SPECIAL : कोरोना संकट से उबार सकता है पर्यावरण संरक्षण भी


JUNE 5 WORLD ENVIRONMENT DAY SPECIAL

कोरोना संकट से उबार सकता है पर्यावरण संरक्षण भी - नवीन जैन, वरिष्ठ पत्रकार 


WORLD ENVIRONMENT DAY

                 COVID-19 या Corona वायरस के खतरों से निकलने के लिए पर्यावरण संरक्षण पर भी ज्यादा से ज्यादा ध्यान देना जरूरी हो गया है। शोधों से जाहिर हो चुका है कि कोरोना का महासंकट प्रकृति से की गई लगातार मनमानी छेड़छाड़ से भी उपजा। 5 जून एक ऐसा दिन है जब हम प्रकृति संरक्षण को जीवन का छोटा सा मकसद भी बना सकते है । 5 जून को हर साल विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस मनाया जाता है।

अथर्व वेद में कहा गया है कि हे धरती माँ, जो कुछ भी तुमसे लूँगा वह उतना ही होगा जितना तू पुनः पैदा कर सके । तेरे मर्मस्थल पर या तेरी जीवन शक्ति पर कभी आघात नहीं करूँगा । मनुष्य जब तक प्रकृति के साथ किए गए इस वादे पर कायम रहा सुखी और संपन्न रहा किन्तु जैसे ही इस वादे का अतिक्रमण हुआ प्रकृति के विध्वंसकारी और विघटनकारी रूप उभर कर सामने आए । सैलाब और भूकम्प आए । पर्यावरण में और विषैली गैसें घुलीं । मनुष्य की आयु कम हुई और धरती एक-एक बूँद पानी के लिए तरसने लगी ।

गौरतलब है कि प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन पर अध्ययन करने वाली अमेरिकी गैर सरकारी संस्था ‘ग्लोबल फुट पिंट’ ने अपनी एक रिपोर्ट पेश की है जिसमें कहा गया है कि दुनिया में प्राकृतिक संसाधनों का इस कदर दोहन हो रहा है कि साल भर में इस्तेमाल होने वाले प्राकृतिक संसाधन मात्र छह महीने में ही खत्म हो रहे हैं । 
        पर्यावरण और वन्य जीवों के संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्था ‘वल्र्ड वाइल्ड फंड फाॅर नेचर’ ने भी ग्लोबल फुट प्रिंट की चेतावनी पर चिंता जाहिर की है तथा कहा भी है कि मनुष्य की संसाधनों से मांग प्रकृतित के भरण-पोषण की क्षमता से कहीं ऊपर जा पहुँची है ।

पिछले कुछ समय से दुनिया में पर्यावरण को लेकर काफी चर्चा हो रही है। मनुष्य की गलत गतिविधियों के कारण पृथ्वी को बहुत खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।  जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है तथा वाहनों से रोजाना हजारों लाखों टन धुँआ निकल रहा है जो हवा को प्रदूषित कर रहा है । कारखाने जो नदियों में जहरीला कचरा बहा रहे हैं तो कुछ बड़े राष्ट्र समुद्र में परमाणु परीक्षण करके उसे विषाक्त बना रहे हैं । मनु प्रसंग में हा गया है कि जब पाप अधिक बढ़ता है तो धरती  काँपने  लगती है । यह  भी लिखा है कि प्रकृति किसी के साथ भेदभाव नहीं 
करती । प्रकृति के द्वार सबके लिए समान रूप से खुले हैं । प्रकृति हमारी सभी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन उपलब्ध करती है लेकिन हमारे लालच को पूरा करने के लिए नहीं । अतः हम जब प्रकृति से अनावश्यक खिलवाड़ करते हैं तब उसका गुस्सा भूकम्प, सूखा, बाढ, सैलाब एवं तूफान की शक्ल में आता है। आज हर आदमी प्रकृति का नाश करने पर ही तुला हुआ है ।

वर्तमान में मनुष्य अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए पेड़ों को लगातार काट रहा है लेकिन उतनी ही गति से नए पौधे नहीं लगते । लगातार पेड़ों के कटने के कारण वनों के जीव-जन्तुओं का जीवन भी खतरे में पड़ गया है । वनों की संख्या भी कम हो गई है ।

अनियंत्रित शहरीकरण, औद्योगीकरण और कृषि में रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल के कारण वन्य जीव-जन्तु भी कम हुए हैं । 
                                                  
          इस समय दुनिया में पक्षियों की करीब 9900 ज्ञात प्रजातियाँ हैं । पक्षी विज्ञानी आर.के. मलिक के अनुसार बदलती जलवायु, मानवीय हस्तक्षेप तथा भोजन में घुल रहे जहरीले पदार्थ पक्षियों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं । एक अनुमान के अनुसार आने वाले 100 सालों में पक्षियों की 1183 प्रजातियाँ विलुप्त हो सकती हैं । 

          इसके अलावा बाघों तथा हाथियों द्वारा मानव की बस्तियों पर हमले की खबरें भी अक्सर अखबारों में छपती हैं । इसका भी  सीधा-सा कारण है कि लगातार जंगलों के कटने और घटने के कारण मनुष्य तथा जंगली जानवरों के बीच टकराव बढ़ रहा है ।

भारत का बहुत अच्छा दोस्त देश भूटान है । भूटान दक्षिण पूर्व एशिया में बसा हुआ बहुत छोटा सा देश है लेकिन इसकी ख्याति इस कारण है कि यह खुशनुमा देश है । इस देश से सीख लेनी चाहिए कि यहाँ पर्यावरण की ंिचंता करने का फायदा देश के नागरिकों को इस रूप में मिला हेै कि वे प्रदूषण रहित माहौल में रहते हैं । देश का 60 फीसदी हिस्सा ऐसा है जहाँ किसी तरह का निर्माण नहीं है । यहाँ  के  लोग  शांतिपूर्वक तथा मानवीय होने के साथ ही प्रकृति से मिल-जुल कर  रहते हैं । यहाँ शहरों को कांक्रीट के जंगल में बदलने की होड़ नहीं है । सन् 1980 के बाद से ही यहाँ जीने की उम्र 20 साल बढ़ी है और प्रति व्यक्ति आय 450 गुणा । भूटान मंे हवा, पानी और धरती स्वच्छ है । यह एक ऐसा देश है जिसने कभी इस बात की चिंता नहीं कि यह तरक्की की दौड़ में शहरों से पीछे है । यहाँ के लोग संतुष्ट हैं और इसी कारण खुश भी हैं । वहाँ खुशी सबसे ऊपर है । 

भारत में प्राकृतिक संसाधनों को बचाना अब सबसे बड़ी चुनौती है । 
        पानी का अगर हमने बुद्धिमानी से इस्तेमाल नहीं किया तो वह दिन दूर नहीं जब हमें थोड़े से पानी के लिए तरसना पड़ेगा । पानी का सही इस्तेमाल कई तरीकों से किया जा सकता है जैसे अपने दाँतों को ब्रश करते हुए बहता हुआ पानी बंद करके, फववारों की जगह बाल्टी के पानी से नहाकर, आर.ओ. के अपशिष्ट पानी का उपयोग पौधों को देकर या घर को साफ करने के लिए इस्तेमाल करके किया जा सकता है । हमारे देश में करोड़ों लीटर पानी  तो गाड़ियाँ धोने में ही खत्म हो जाता है । यहाँ भी लगाम कसना जरूरी है । इसी तरह प्रकृति के संरक्षण के लिए बिजली के उपयोग को भी सीमित करना आवश्यक है । विद्युत उपकरण बंद करके खासकर जब वे उपयोग में ना हों या फिर ऐसे बल्ब या ट्यूबलाइट का इस्तेमाल करके जिससे कम से कम बिजली की खपत हो। जैसे एल.ई.डी लाईट । जितना संभव को सके उतने पेड़ लगाएँ । तभी हर दिन जो पेड़ कट रहे हैं उनकी भरपाई हो सकेगी । पेशेवर खेती में उपयोग किए जाने वाले रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को प्रतिबंधित करने के लिए कोशिश करें । 

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